Thursday, August 20, 2009

कई दिन हुए उस आग को लगे

अब किसी धुएं से कोई राख नही उड़ती। कई दिन हुए उस आग को लगे। न फायर ब्रिगेड को बुलाया, न आग बुझाने पडोसियों को। समय के साथ साथ सारा सामान धूं धू कर जलने लगा।

याद है मुझे वो लकड़ी की कुर्सी ..जिनके हत्तो पर खड़े होकर मै टांड का समान निकला करता था। उसी टांड पर परीक्षा के दिनों में पापा मेरा केरम भी रख देते थे।

इनते दिनों की आग में वो केरम भी मेरा बचपन लेकर राख के साथ उड़ गया। अब किसी धुएं से कोई राख नही उड़ती। कई दिन हुए उस आग को लगे।

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