Monday, January 25, 2010

न जाने कब बारिश होगी

कहीँ किसी तपिश से धुआ उठा होगा

न जाने कब बारिश होगी

गर्मी तो पहले भी बरसी थी सूरज से

लेकिन इस बार किरणों में अंगारे बसे हैं

पिछली बारिश में सभी पत्ते भीग गए थे

कुछ नए जन्मे,कुछ बड़े हो गए थे

चारो तरफ हरियाली थी, जीवन था, खुशहाली थी

हर इंसा की जेब में खुशियों का बटुवा था

दिन बीतते गए, गर्मी आती गयी ,

खर्चे बढ़ते रहे और बटुवा खाली होता रहा

धरती को तगारी समझ, सूरज अलाव जलाता रहा

हलकी भूरी ताई ने हरियाली का दम घोट लिया

इतने पर भी कभी हवाओ में काला धुआ नहीं उड़ा

पर अबकी बार ये तपिश किरणों की नहीं अंगारों की है,

धुआ उठाने लगा है - न जाने, कब बारिश होगी