चिडिया के पर तो छोटे हैं पर
पर की ताकत पर से परे है
ऊँचे नभ की सीमओं पर भी
सबसे पहले पहुंचे पर है
मन में पर का भावअगर हो
पर अदने से लगते हैं
निस्तेज पड़े इक बुत पर जैसे
कौवे उड़ने लगते हैं
है पर की ही ताकत
पर की ही हिम्मत
चिडिया को पर से पार ले चले
उन्मुक्त गगन में वीर परों का
आह्वाहन भला हम क्यों न करे ?
4 comments:
nice....keep it up
this poem realy give motivation to keep goin on and on....good work man.
nice dear Rohit..
nice poem Rohit!!!
Keep it up...nice to read u in hindi.
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