"कुछ कहे" दिल की दहलीज़ पर दस्तक से निकली वो रचना है जो शायद एक स्वतंत्र धारा बन के निकली है । अपने अन्दर समाये हुए कई भावो को कभी कविता के द्वारा , कभी गीतों के द्वारा निकालने का प्रयास है । ये कुछ कहने का प्रयास है ।
Monday, June 28, 2010
लडखडाया वो समय का टुकड़ा
लडखडाया वो समय का टुकड़ा न किनारा हाथ में न तिनका ही साथ में बहता चला गया वो समय का टुकड़ा लडखडाया वो समय का टुकड़ा
शुरू हुआ था जबसे सपने बुने थे तंबसे रंग फ़ैल गया मंज़र बदल गया लडखडाया वो समय का टुकड़ा
4 comments:
What a creativity man...........
wow bro
its really cool.
par ye batao ye likhne ka woqt jab milta hai toh ek nazar mere blogs bhi padh liya karo
Small yet extremely compelling piece of writing..:)
kya baat hai da...:-)
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