"कुछ कहे" दिल की दहलीज़ पर दस्तक से निकली वो रचना है जो शायद एक स्वतंत्र धारा बन के निकली है । अपने अन्दर समाये हुए कई भावो को कभी कविता के द्वारा , कभी गीतों के द्वारा निकालने का प्रयास है । ये कुछ कहने का प्रयास है ।
Monday, June 28, 2010
तेरा नाम बन के जिया था
तन्हाई में छिपा था न मुफलिसी में बसा था मेरा प्यार मेरे दिल में तेरा नाम बन के जिया था
चमकते तारे आसमान में होंगे नज़ारे इस जहाँ में रूप तेरा बसा हुआ था ये दिल तभी तो धड़क रहा था मेरा प्यार मेरे दिल में तेरे नाम से जिया था
1 comment:
Kya dard hai bhai............
Kisne thukraya tujhe.........
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